Amisha Rawat shares her race toward a global track
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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग से पेरिस पैरालिम्पिक्स की कहानी: खुद अमीषा रावत की जुबानी

Amisha Rawat shares her race toward a global track

मैं उत्तराखंड के एक छोटे शहर रुद्रप्रयाग में जन्मी और पली-बढ़ी। बचपन से ही मेरा  रुझान खेल कूद की तरफ रहा है।  एक तरह से कहें तो कम्पटीशन की भावना और फिर जीत की ख़ुशी ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है। आज, मैं अपने सबसे बड़े सपने, पैरालंपिक पदक जीतने के पहले से कहीं ज्यादा करीब हूं। मगर ये सफर आसान नहीं था।

रुद्रप्रयाग में बड़े होते हुए मेरी यात्रा छोटे कदमों से शुरू हुई। स्कूली खेल आयोजनों और कार्यक्रमो में भाग लेने से मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरे पास खेल के लिए प्रतिभा है। संसाधन सीमित थे, लेकिन मेरा जज्बा बहुत बड़ा। मौका मिलता अपनी टाइमिंग और परफॉरमेंस को बेहतर बनाने की कोशिश में लगी रहती थी, अक्सर अपने घर के पास एक छोटे से बगीचे में। बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के मैंने ऑनलाइन ट्यूटोरियल और बेहतरी की अपनी ट्रेनिंग पर भरोसा किया।

वित्तीय चुनौतियाँ मेरे परिवार के लिए निरंतर चिंता का विषय थीं। मेरे पिता, सुरेंद्र सिंह रावत, सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कार्यरत हैं, और मेरी माँ एक हाउसवाइफ हैं। मेरे संघर्ष और सपने साथ साथ चलते रहे।

एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मेरे पीटीआई टीचर श्री अनिल कंडवाल ने मुझे पैरा-स्पोर्ट्स से परिचित कराया। वह मुझे उत्तराखंड राज्य पैरा चैंपियनशिप में ले गए, जहां मैंने 100 मीटर और 200 मीटर स्पर्धाओं में दो स्वर्ण पदक जीते। उस अनुभव ने मेरे लिए एक नई दुनिया खोल दी, और मुझे पता था कि मुझे यही करना था।

मगर जैसे जैसे मेरा कम्पटीशन लेवल बढ़ता गया, मुझे समझ आया की बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के कोई खिलाडी एक लेवल के आगे नहीं जा सकता।  आप इसे किस्मत कह सकते हैं की उसी वक़्त मेरी मुलाकात 2018 पैरा एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता संदीप चौधरी से हुई। उन्होंने मुझमें क्षमता देखी और मुझे शॉट पुट और जेवलिन थ्रो जैसी स्पर्धाओं में प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने मुझे पेशेवर प्रशिक्षण के लिए दिल्ली जाने का सुझाव भी दिया, का प्रकोप मंडरा गया और समझो तो मेरी सारी प्लानिंग को ग्रहण लग गया। 

2022 में, अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, मैं अंततः जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के लिए दिल्ली आयी, जहाँ मैंने फ्रेंच की पढ़ाई शुरू की। यहीं मेरी मुलाकात विश्वविद्यालय में सहायक खेल निदेशक डॉ. राकेश यादव से हुई, जो मेरे कोच बने। उनके मार्गदर्शन से मैंने शॉट पुट पर ध्यान देना शुरू किया और चीजें धीरे धीरे रंग दिखने लगीं। मैंने ‘खेलो इंडिया’ सहित कई प्रतिस्पर्धाओं में राष्ट्रीय पदक जीतना शुरू किया और यहां तक ​​कि ग्रैंड प्रिक्स के लिए स्विट्जरलैंड भी गयी, जहां मैंने जेवलिन थ्रो में कांस्य पदक जीता। इस सफलता के कारण हांग्जो में एशियाई पैरा खेलों के लिए मेरा चयन हो गया।

इस यात्रा ने मुझे एक स्पोर्ट्समैन के फोकस,  संघर्ष, ट्रेनिंग और दिमागी ताकत के बारे में बहुत कुछ सिखाया है। प्रत्येक चुनौती ने मुझे एक एथलीट और एक व्यक्ति दोनों के रूप में मजबूत बनाया है। मैंने सीखा है कि यह सिर्फ जीतने के बारे में नहीं है, बल्कि आगे बढ़ने और बेहतरी के बारे में भी है।

अब, जैसे-जैसे मैं पैरालंपिक की तैयारी कर रही हूं, मेरे जेहन में बस एक ही ख्याल है: कब मेरे गले में भी एक पदक पहनाया जायेगा और कब में परलिम्पिक पोडियम पर खड़ी हो कर देश का नाम रौशन करुँगी। मैंने सीखा है कि अटूट विश्वास और अथक प्रयास से कोई भी सपना साकार हो सकता है। मैं अपने देश को गौरवान्वित करने और दूसरों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं, चाहे यात्रा कितनी भी कठिन क्यों न हो।

(अमीषा रावत पेरिस पैरालिंपिक 2024 में भारतीय दल की सदस्य हैं)

For more details visit us: https://lokmarg.com/

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