कास्टिंग काउच की बीमारी अभी पंजाबी टीवी इंडस्ट्री में नहीं आयी
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कास्टिंग काउच या यौन शोषण की बीमारी अभी पंजाबी टीवी इंडस्ट्री में नहीं आयी है

कास्टिंग काउच की बीमारी अभी पंजाबी टीवी इंडस्ट्री में नहीं आयी

पंजाबी सिनेमा की टीवी और फिल्म अभिनेत्री वंदना सिंहका कहना है कि एक अभिनेत्री को किसी अशोभनीय प्रस्ताव से बचने के लिए अपने चारों ओर कुछ दीवारें बनानी चाहिए। उसके विचार:

जस्टिस हेमा कमेटी की हालिया रिपोर्ट में मॉलीवुड यानी मलयालम सिनेमा में यौन शोषण के बारे में किए गए खुलासे किये गए हैं, जिनसे मनोरंजन जगत की छवि को एक धक्का सा लगा है। चूँकि मेरे पास साउथ सिने कल्चर का कोई तजुर्बा नहीं है, मैं केवल पंजाबी शो इंडस्ट्री के बारे में ही बता सकती हूँ। मैंने 2012 में ज़ी टेलीविज़न के शो ‘फिर सुबह होगी’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी। इंडस्ट्री में बिताए 12 सालों में मुझे कभी भी किसी तरह के शोषण या तनाव का सामना नहीं करना पड़ा। ये शायद इसलिए हुआ क्योंकि टीवी की दुनिया में सिनेमा के मुकाबले ट्रांसपेरेंसी कहीं ज्यादा है।

टीवी शो इंडस्ट्री ने खुद को किसी भी तरह की गंदगी से दूर रखा है। इस पेशे में यहां विभिन्न राज्यों, शहरों और कस्बों के लोग हैं, और हम अक्सर अपने एक्सपीरियंस एक दूसरे से साझा करते हैं। मैं अपने और अपने साथी कलाकारों के अनुभव के आधार पर बिना झिझक आपको बता सकती हूं कि टीवी मनोरंजन व्यवसाय में किसी भी महिला कलाकार ने कभी भी किसी शोषण या पर्सनल सिक्योरिटी को लेकर किसी तकलीफ का सामना नहीं किया है।

यह एक छोटी से कम्युनिटी है। और यहाँ काम बड़े ही नियंत्रित तरीके से चलता है।  मसलन, किसी विशेष भूमिका के लिए कास्टिंग निर्देशकों या प्रोडक्शन हाउस द्वारा कलाकारों से संपर्क किया जाता है। वे आपको अगले होने वाले शो, नए बैनर और भूमिकाओं के बारे में भी इत्तिला देते रहते हैं। ऑडिशन की तारीखें तय हो जाती हैं और एक बड़े समूह से कुछ अभिनेताओं को शॉर्टलिस्ट किया जाता है। दूसरा ऑडिशन होता है जिसके बाद स्क्रीन टेस्ट होता है। यदि भाग्य आपके साथ है, तो आप मॉक शूट के लिए भी चुने जा सकते हैं। दो या तीन लोगों के साथ होने वाले मॉक शूट के बाद, एक व्यक्ति को भूमिका के लिए चुना जाता है।

मैंने पंजाबी फिल्म में भी काम किया है। वहां का नजारा और नजरिया थोड़ा अलग है। आपके कॉन्टेक्ट्स और आपकी दोस्ती-यारी आपको सही फिल्में दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आमतौर पर वहां ऑडिशन नहीं होते. किसी भूमिका के लिए बहुत लॉबिंग होती है और आमतौर पर उन्हीं लोगों को बार-बार हीरो के रूप में लिया जाता है क्योंकि निर्देशक या निर्माता उन्हें जानते हैं। और वही अभिनेत्रियाँ फिल्म दर फिल्म नायिका की भूमिका निभाती रहती हैं।

पंजाबी सिनेमा में काम पाना आसान नहीं है। हमें पता नहीं चलता कि कब कास्टिंग पूरी हो जाती है या कोई नया प्रोजेक्ट लॉन्च हो जाता है। फिल्म का टीजर रिलीज होने के बाद ही हमें इसके बारे में पता चलता है। और आप उनकी सभी फिल्मों में चेहरों का एक ही कलाकारों का सेट देखते हैं। हालाँकि, शोषण पूरी तरह से अनसुना है।

दक्षिण में, हालाँकि मैंने कभी किसी फिल्म या शो के लिए ऑडिशन नहीं दिया है, सुनते हैं कि ऑडिशन वहां थोड़े इंटिमेट होते हैं और महिलाओं से अक्सर पूछा जाता है कि वे बोल्ड सीन करने में कितनी कम्फ़र्टेबल हैं। साउथ सिनेमा के ज्यादातर ऑडिशन मुंबई में होते हैं। मुंबई के प्रोडक्शन हाउस बहुत प्रोफेशनल हैं। जब भी हमारी देर रात शूटिंग होती है तो प्रोडक्शन टीम इस बात का ध्यान रखती है कि हम सुरक्षित घर पहुंच जाएं। यहां तक ​​कि सह-अभिनेता भी मददगार हैं।’ दूरदराज के स्थानों में, जहां परिवहन आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकता है, चालक दल की सभी महिलाओं का ख्याल रखा जाता है।

जहां तक ​​किसी भी उद्योग में यौन शोषण का सवाल है, मुझे लगता है कि महिलाओं को अपनी तरफ से कुछ कारगर और छुपे हथियारों का सहारा लेना चाहिए – चाहे वह आपकी जुबान हो या आपका खुद को कंडक्ट करने का तरीका. आपकी नजर से ही लोगों को ये मैसेज मिल जाना चाहिए कि वो कोई ग़लतफ़हमी न पाल लें। इसलिए कोई भी आपके पास गलत इरादे से आने से पहले सौ बार सोचेगा। उस प्रकार की ढाल बहुत जरूरी है।

और यह बात किसी भी पेशे पर लागू होती है क्यूंकि शोषण हर पेशे में होता है, चाहे वो कॉर्पोरेट वर्ल्ड हो या धर्म और राजनीती से जुड़ा कोई काम। सिर्फ इसलिए कि फिल्म उद्योग थोड़ा खुला और लापरवाह है, चीजें सामने आ जाती हैं। मेरी सभी प्रोफेशनल महिलाओं को यही सलाह है कि अपना खुद को मजबूत रखें ताकि कोई आप पर गलत नजर ही न डाल पाए। और कभी कोई ऐसी सिचुएशन आ जाये तो आप में मजबूती से NO कहने कि हिम्मत होनी चाहिए। 

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