जोखिम भरे रील बनाने वालों को सोशल मीडिया से बैन कर देना चाहिए; उन्हें डीऐडिक्शन सेंटर भेजना चाहिए
लखनऊ बेंच के एडवोकेट मनीष त्रिपाठी का मानना है कि जो कंटेंट क्रिएटर्स नियम कानून को ताक पर रख कर रील बनाते हैं, उन्हें कतई बख्शा नहीं जाना चाहिए। उनके विचार:
फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इन दिनों बेवकूफी भरे और खतरनाक शार्ट वीडियो, जिन्हे रील के नाम से जाना जाता है। अगर कभी आपको ऐसी किसी बेहूदा रील देखने का मौका मिला हो, तो आप अपना माथा पीट लेंगे। ये वीडियो क्लिप न केवल हमारे सामाजिक पतन का प्रतीक हैं, बल्कि उन्हें बनाने वालों और आम जनता की सुरक्षा के लिए खतरा भी हैं।
हाल ही में, मैंने ऐसी ही एक रील देखी, जहां एक भीड़ भरे इलाके में मोटरसाइकिल-सवार दो युवक हवा में नोट उछाल रहे थे। दूसरे में मैंने देखा कि एक युवा लड़की अपनी कार को रिवर्स गियर में इतनी तेजी से चला रही थी कि अंततः वह एक चट्टान से गिर गई और उसकी जान चली गई। पहला वाकिया सुरक्षा के लिए ख़तरा या अपराध था, जबकि बाद वाला सीधे तौर पर एक ख़ुदकुशी का केस था। जरा सोचिये ये युवा अपनी और दूसरों की जान जोखिम में क्यों डाल रहे हैं? किसलिए? सस्ता लोकप्रियता? या सिर्फ अधिक फॉलोअर्स और ‘लाइक’ के लिए? या फिर ऐसी रील बना कर वो एक कमाई कर जरिया ढूंढ रहे हैं?
हालाँकि रीलों में किए गए कुछ मूर्खतापूर्ण हादसों को कानून के दायरे में रह कर रोका जा सकता है, लेकिन ऐसे अधिकांश स्टंट एक दिमागी बीमारी हैं। कानूनी दृष्टि से, यदि कुछ व्यक्ति सड़कों पर आवाजाही में बाधा डाल रहे हैं — वाहन पर स्टंट करके या खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाकर — तो उन पर मोटर वाहन अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। नई बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) में सामाजिक और सार्वजनिक सौहार्द बिगाड़ने, भड़काने, सार्वजनिक जीवन को खतरा पैदा करने, अफवाहें फैलाने आदि के लिए विभिन्न दंडात्मक धाराएं भी हैं, जिसके तहत ऐसे लोगों को कानून के दायरे में लाया जा सकता है। मगर सच कहूं तो हमारी पुलिस ऐसे मामलों के खिलाफ कार्रवाई करने में अनिच्छुक हैं, या तो अपने काम के बोझ के कारण या सिर्फ गैर दिलचस्पी के चलते।
सरकार को सोशल मीडिया और इंटरनेट के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सख्त निषेधात्मक कानून पारित करने के अलावा, इन रोक लगाने पर भी ध्यान करना चाहिए – दोषियों को हिरासत में भेजने के साथ उन्हें काउंसलिंग भी चाहिए होगी। क्योंकि, इनमें से अधिकांश रील बनाने वाले अपने कंटेंट से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि इसने एक लत का रूप ले लिया है, जहां उनमें शामिल जोखिम के बारे में सोचे बिना वो सिर्फ पहले से बेहतर रील और पहले से ज्यादा व्यूज के लिए और जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं।
सरकारी एजेंसियों और पेरेंट्स ग्रुप्स को एक साथ बैठकर एक ऐसा सिस्टम बनाना होगा जिसमें ऐसे रिस्की कामों को हतोत्साहित या दंडित किया जा सके। इनके खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए एक मीडिया अभियान (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया) चलाना चाहिए। साथ ही ऐसे कंटेंट क्रिएटर्स की गिरफ्तारी और सजा को प्रचारित किया जाना चाहिए ताकि दूसरों को इस तरह का रास्ता अपनाने से रोका जा सके।
दूसरा, ऐसी जगहें जो रील बनाने वालों के पसंदीदा स्पॉट हैं (जैसे कि केबल पुल, ऊंची इमारतें, चट्टानें, धार्मिक स्थान) वहां या उनके आसपास बड़े नोटिस-बोर्ड भी होने चाहिए जहाँ ऐसी गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी दी जा सके, साथ ही कानून तोड़ने वालों के लिए जुर्माना और दंड भी दिया जा सके। .हालाँकि कुछ सरकारें (राज्य और केंद्र) इस खतरे को रोकने के लिए बढ़िया काम कर रही हैं, उन्हें एक कदम आगे बढ़कर ऐसे युसर्स को सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से ब्लॉक करने की पहल भी करनी चाहिए।
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रविंद्र सिंहद्वारा अनुदित