
‘इस साल नितीश अपनी मुख्य मंत्री की कुर्सी नहीं बचा पाएंगे’
बिहार से संबंध रखने वाले लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र गोविंद मिश्रा कहते हैं कि इस बार भारतीय जनता पार्टी-जनता दल (यू) गठबंधन बिहार में बहुत कठिन स्थिति में है।
हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार बुढ़ापे के संकेत दिखा रहे हैं। उनकी सोचने—समझने की क्षमता और सार्वजनिक जगहों पर दिए गए कुछ असमंजसपूर्ण बयानों से उनके अपने दल और गठबंधन-साथी भाजपा असहज महसूस कर रहे हैं। पहले से ही उनके पद पर बने रहने की क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं।
कुछ लोकमत सर्वे बताने लगे हैं कि नितीश अब अधिकांश लोगों की पहली पसंद मुख्यमंत्री के रूप में नहीं रहे। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि एनडीए ये बात नहीं देख पा रहा। जब मैं हाल ही में अपने गृह राज्य गया था, मैंने नए नारे और पैनच-लाइन देखीं जो बुज़ुर्ग नेता के पक्ष में बनाई जा रही थीं। उनमें से एक था: “पच्चीस से तीस, फिर से नितीश”। स्पष्ट रूप से यह दिखाता है कि वे फिर से नितीश को एनडीए का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना रहे हैं।
मेरी सीमित राजनीतिक समझ के अनुसार मैं यह देखता हूँ कि यह एनडीए की एक बड़ी चूक है। उन्हें यह महसूस नहीं हुआ कि नितीश अब खत्म हो चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट्स ने यह संकेत दिया है कि मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में नितीश को आगे लाने से गठबंधन-साथियों के बीच मतभेद और आंतरिक कलह शुरू हो गई है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने हाल ही में कहा कि भाजपा बिहार चुनावों में सम्राट चौधरी के नेतृत्व में जीत हासिल करेगी — जो कि उनके मुख्यमंत्री चेहरे का विकल्प दिखाता है। चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री और एनडीए सहयोगी दल – लोक जनशक्ति पार्टी के नेता ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी बिहार में पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ये सभी घटनाएँ भाजपा को बचाव-स्थिति में ला रही हैं। उनके चुनाव-प्रबंधक रणनीति बनाने की बजाय ‘आग बुझाने’ में व्यस्त हैं। और बिहार के मतदाता देख रहे हैं कि हवा किस दिशा में बह रही है।
वहीं, विपक्षी गठबंधन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक ने तुरंत इस मौके को पकड़ लिया है और कह रहे हैं कि एनडीए के अंदर ही एक खामोश विद्रोह खड़ा हो रहा है। इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस के अलावा शामिल हैं राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), वाम दल और हाल ही में शामिल हुई विकासशील इंसान पार्टी (जो पिछली बार एनडीए का हिस्सा थी और चार सीटें जीती थी)।
पिछली बार 2020 के विधानसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने करीब 110 सीटें हासिल की थीं और एनडीए ने 125। इस बार उन्होंने अपनी चुनाव-अभियान को नया रूप दिया है, जैसे जाति-गणना, वक्फ़-कानून, वोट चोरी और राज्य में हाल के महीनों में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति। राहुल गांधी ने पहले ही करीब 50 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी ‘वोट अधिकार’ यात्रा शुरू कर दी है।
खैर, इस बार भी,जैसे हर बार होता आया है,यह चुनाव एक दिलचस्प मुकाबला होगा, जहाँ सभी दल और गठबंधन मतदाताओं तक पहुँचना चाह रहे हैं नए वादों और लंबी पूर्व-चुनावी सूची के साथ।



